जिस प्रकार सूर्योदय होने पर निशाचरों का पता नहीं लगता ; उसी प्रकार ब्रह्मज्ञान हो जाने पर भ्रष्टाचार की माया किसी भी रूप में नहीं रह पाती।
महामाया वह है , जिसकी कृपा से मनुष्य माया और योगमाया के पर्दे को पार कर जाता है और वास्तव में परमेश्वर के स्वरूप का साक्षात्कार कर पाता है। इन्हीं की कृपा से व्यक्ति के चित्त का परिष्कार होता है। वस्तुत: संसार व्यक्ति के मन में बसता है ; हमारी आंतरिक वृत्तियों का दूसरा नाम ही संसार है।
इस तरह संसार में बहुत कुछ पाने का लोभ है और नष्ट हो जाने या छिन जाने का भय भी है और यही तो संसार है। व्यक्ति सम्मान व यश पाने के लिए अपना सब कुछ लुटा देता है और अंत में वह क्या प्राप्त कर पाता है __ प्रशंसा , प्रभाव , चकाचौंध , गुणगान आदि।
लेकिन इस तरह कुछ महापुरुष ऐसे भी होते हैं , जो कभी भी सम्मान की कामना नहीं रखते हैं। और संसार युग-युगों तक स्मरण करता रहता है।
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