बेंत - सी विनम्रता
वर्षा ऋतु में नदियाँ अपने साथ बड़े - बड़े वृक्ष भी उखाड़ कर बहाए लिए चली जा रही थी। यह देखकर सागर ने कहा --हे ! सरिताओं , तुम अपने साथ इतने विशाल हरे- भरे वृक्ष बहा लाती हो। इनमें आम पीपल , बरगद सभी तरह के वृक्ष होते हैं। लेकिन आज तक कभी बेंत का वृक्ष बहा कर नहीं लायी ?
क्या उसने तुम्हारे ऊपर कोई उपकार किया है ?
नदियों ने कहा _ उसने हमारे ऊपर कोई नहीं किया। बात सिर्फ इतनी है कि जब हम अपने प्रभंजन वेग से आगे बढ़ती हैं तो वह हमारे आगे पूरी तरह नतमस्तक हो जाते हैं। हमारे वेग से आगे समा जाते है। इसीलिए हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ते। दूसरी ओर ये बड़े वृक्ष झुकते नहीं ; अकड़े खड़े
रहते हैं ; इसलिए हम उन्हें उखाड़ फेंकते हैं। *****
वर्षा ऋतु में नदियाँ अपने साथ बड़े - बड़े वृक्ष भी उखाड़ कर बहाए लिए चली जा रही थी। यह देखकर सागर ने कहा --हे ! सरिताओं , तुम अपने साथ इतने विशाल हरे- भरे वृक्ष बहा लाती हो। इनमें आम पीपल , बरगद सभी तरह के वृक्ष होते हैं। लेकिन आज तक कभी बेंत का वृक्ष बहा कर नहीं लायी ?
क्या उसने तुम्हारे ऊपर कोई उपकार किया है ?
नदियों ने कहा _ उसने हमारे ऊपर कोई नहीं किया। बात सिर्फ इतनी है कि जब हम अपने प्रभंजन वेग से आगे बढ़ती हैं तो वह हमारे आगे पूरी तरह नतमस्तक हो जाते हैं। हमारे वेग से आगे समा जाते है। इसीलिए हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ते। दूसरी ओर ये बड़े वृक्ष झुकते नहीं ; अकड़े खड़े
रहते हैं ; इसलिए हम उन्हें उखाड़ फेंकते हैं। *****
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