ईश्वर के प्रति अश्रद्धा
" हिरण्यमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखं "
सोने के पात्र से सत्य का मुख ढ़का रहता है , अर्थात माया के बंधन परमात्मा को अनुभव नहीं करने देते।
संत बल्लभाचार्य जिस गाँव में रहते थे , उस गाँव का नाई ईश्वर के प्रति अत्यधिक अश्रद्धा रखता था। जब भी संत उसके द्वार के पास से निकलते तो वह उन्हें सुनाने के लिए जोर-जोर से बोलता __' दुनिया में कोई भगवान् नहीं है ; नहीं तो यहाँ इतने सारे दुखियारे क्यों होते ? ' संत हँसते हुवे उसकी बात को टाल जाते।
एक दिन नाई अपनी दुकान पर बाल काट रहा था और एक-दो व्यक्ति बाहर अपनी बारी आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी संत बल्लभाचार्य वहाँ से निकले। उन्होंने नाई को आवाज देकर बुलाया और बोले _ " लगता है इस गाँव में कोई नाई नहीं है , नहीं तो इस आदमी के बाल इतने क्यों बढ़ जाते। " नाई खिसियाते हुवे बोला _ ' महाराज ! नाई तो मैं ही हूँ , पर जब यह मेरे पास बाल कटवाने ही नहीं आएगा तो बाल कैसे कटेंगे ? '
" हिरण्यमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखं "
सोने के पात्र से सत्य का मुख ढ़का रहता है , अर्थात माया के बंधन परमात्मा को अनुभव नहीं करने देते।
संत बल्लभाचार्य जिस गाँव में रहते थे , उस गाँव का नाई ईश्वर के प्रति अत्यधिक अश्रद्धा रखता था। जब भी संत उसके द्वार के पास से निकलते तो वह उन्हें सुनाने के लिए जोर-जोर से बोलता __' दुनिया में कोई भगवान् नहीं है ; नहीं तो यहाँ इतने सारे दुखियारे क्यों होते ? ' संत हँसते हुवे उसकी बात को टाल जाते।
एक दिन नाई अपनी दुकान पर बाल काट रहा था और एक-दो व्यक्ति बाहर अपनी बारी आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी संत बल्लभाचार्य वहाँ से निकले। उन्होंने नाई को आवाज देकर बुलाया और बोले _ " लगता है इस गाँव में कोई नाई नहीं है , नहीं तो इस आदमी के बाल इतने क्यों बढ़ जाते। " नाई खिसियाते हुवे बोला _ ' महाराज ! नाई तो मैं ही हूँ , पर जब यह मेरे पास बाल कटवाने ही नहीं आएगा तो बाल कैसे कटेंगे ? '
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