सोमवार, 12 अगस्त 2013

सहजीवन

सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु।  सह वीर्यं करवावहै।  तेजस्वि नावधीतमस्तु।  मा विद्विषावहै। ॐ शांति: ! शन्ति:! शांति: !!!

इस वैदिक सूक्त में ' सहजीवन की उत्कृष्टता को स्पष्ट किया गया है ---सहजीवन के पथिक दोनों की एकसाथ ही रक्षा हो।  दोनों एकसाथ मिलकर पालन-पोषण करें।  साथ ही साथ शक्ति अर्जित करें।  हमारा अध्ययन तेज से परिपूर्ण हो।  हम कभी भी परस्पर विद्वेष-भाव न रखें।  साथ ही हे ! प्रभु हमारी आध्यात्मिक , आधी दैविक और आधिभौतिक इन तीनों ही तापों की निवृत्ति हो।  

यह सहजीवन माता -पिता , पति -पत्नी , भाई -बहन , गुरु-शिष्य आदि विभिन्न सम्बन्धों के मध्य हो सकता है।  यह समाज के प्रत्येक वर्ग के मध्य हो सकता है।  इसमें समाज और मानव -जीवन की समस्याओं का सार्थक समाधान समाहित है।  

सह जीवन संस्कृति है , विकृति नहीं।  संस्कृति सतत विकास का सूचक है ; जबकि विकृति विनाश और अवसान की द्योतक है।  सहजीवन के सांस्कृतिक मूल्य उच्चतम हैं , क्योंकि वे एक दूसरे पर आधारित 

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