सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै। ॐ शांति: ! शन्ति:! शांति: !!!
इस वैदिक सूक्त में ' सहजीवन की उत्कृष्टता को स्पष्ट किया गया है ---सहजीवन के पथिक दोनों की एकसाथ ही रक्षा हो। दोनों एकसाथ मिलकर पालन-पोषण करें। साथ ही साथ शक्ति अर्जित करें। हमारा अध्ययन तेज से परिपूर्ण हो। हम कभी भी परस्पर विद्वेष-भाव न रखें। साथ ही हे ! प्रभु हमारी आध्यात्मिक , आधी दैविक और आधिभौतिक इन तीनों ही तापों की निवृत्ति हो।
यह सहजीवन माता -पिता , पति -पत्नी , भाई -बहन , गुरु-शिष्य आदि विभिन्न सम्बन्धों के मध्य हो सकता है। यह समाज के प्रत्येक वर्ग के मध्य हो सकता है। इसमें समाज और मानव -जीवन की समस्याओं का सार्थक समाधान समाहित है।
very well written and explained Mausaji
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