गुरुवार, 15 अगस्त 2013

धर्म-युद्ध

धर्म-युद्ध 





खलीफा अली जंग के मैदान में थे।  एक मौका आया जब उन्होंने दुश्मन राजा को उसके घोड़े से नीचे गिरा दिया और उसकी छाती पर बैठ गये।  खलीफा ने अपनी तलवार तिरछी की और वे उसे दुश्मन के दिल में भोंकने ही वाले थे कि अचानक दुश्मन राजा ने उसके मुंह पर थूक दिया।  खलीफा तुरंत एकओर हट गये और बोले _' आज की जंग यहीं खत्म।  हम कल फिर लड़ेंगे। ' दुश्मन राजा बोला _ ' लगता है आप घबरा गये।  आज आपके पास मौका है जंग जीतने का , हो सकता है कि कल ऐसा न हो पाए। '

खलीफा ने उत्तर दिया _ ' मित्र ! मजहब का उसूल है कि कभी जोश में होश खोकर कोई काम न करो।  जब तुमने थूका तो मुझे गुस्सा आ गया।  गुस्से में किया गया वार हिंसा होती ; इसलिए मैंने कहा कि आज नहीं कल लड़ेंगे।  ' 

दुश्मन के अचरज का ठिकाना न रहा।  वह तुरंत खलीफा के पैरों में झुक गया और बोला _ ' जो इन्सान जंग भी उसूलों से लड़ता हो , उसे मैं क्या दनिया की बड़ी से बड़ी ताकत भी नहीं हरा सकती।  मैं यह जंग आज ही खत्म करता हूँ। ' 

सिद्धांतो के आधार पर चलाये गये अभियान ही  धर्मयुद्ध  होते हैं।  

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