शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

पुरुषार्थ _ मेहनत

पुरुषार्थ _ मेहनत 
                                                                      

एक मजदूर पत्थर तोड़ता और रोज थक जाता।  सोचता _किसी बड़े मालिक का पल्ला  पकडूँ , ताकि अधिक लाभ मिले और कम से कम मेहनत करनी पड़े।  ऐसा सोचते -सोचते पहाड़ पर चढ़ गया और देव  प्रतिमा से याचना करने लगा।  वह प्रतिमा चुप रही , तो  उसने सोचा और भी बड़े देवता की आराधना करूं।  

वह सोचने लगा कि बड़ा कौन ? तो उसे सूर्य का ध्यान आया।  तो वह सूर्य की आराधना करने लगा।  एक दिन बादलों ने सूर्य को ढ़क दिया।  दो दिन तक सूर्य दिखा ही नहीं।  मजदूर ने सोचा _ बादल सूर्य से बड़े लगते हैं तो वह बादलों की पूजा करने लगा।  बाद में वह सोचने लगा कि बादल भी पहाड़ से टकराकर बरस जाते हैं।  अत पहाड़ का ही भजन करना ठीक होगा।  फिर सोचा की पहाड़ को तो हम रोज तोड़ते और काटते हैं।  हमसे ज्यादा ताकतवर कौन है ? 

वह मजदूर आख़िरकार सब कुछ छोडकर स्वयं अपने आप को सुधारने में लग गया।  इसप्रकार वह पुरुषार्थ के एवं मेहनत के सहारे उठता चला गया।  *****

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