गुरुवार, 15 अगस्त 2013

हाइजीन_ एक बला

हाइजीन_ एक  बला 
                                                            

हाइजीन का तात्पर्य है _ अच्छा स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य का संरक्षण।  इसे स्वच्छता एवं साफ़ -सफाई तथा बचाव के रूप में लिया जाता है।  यह एक सीमा तक तो ठीक है , परन्तु अब इस पर विशेष अत्यधिक ध्यान दिया जाता है ; तो अब यह एलर्जी एवं संक्रामक रोग को जन्म देने का कारण बनता जा रहा है।  वर्तमान में हाइजीन जिन अर्थों में प्रयोग किया जाता है , उनमें तमाम विसंगतियां है।  इसको व्यापक परिप्रेक्ष्य में प्रयोग किया जाना चाहिए।  

उठने बैठने , खाने-पीने तथा पहनने के लिए एकदम साफ चीजों के प्रयोग करने में कोई बुराई नहीं है ; परन्तु केवल इसी का प्रयोग करना एवं धूल -मिट्टी से सदा परहेज करना अनगिनत समस्याओं को जन्म देता है। क्योंकि जीवन में दोनों परिस्थितियों का समान महत्त्व है। 

 दैनिक जीवन में धूल -धक्कड़ और मिट्टी आदि की भी आवश्यकता है।  वैज्ञानिक मानते हैं कि जब कभी हम मिट्टी आदि के सम्पर्क में आते हैं तो हमारे ' इम्यून सिस्टम ' प्रतिरक्षा प्रणाली को कीटाणुओं के सम्पर्क में आने का अवसर मिलता है। 

प्राकृतिक परिवेश में धूल- मिट्टी आदि बिखरी होती है।  बच्चे उसके सम्पर्क में आते हैं और खेलते - कूदते रहते हैं।  इससे उनका शरीर स्वस्थ रहता है।  एलर्जी इन बच्चों को कम होती है और साथ ही संक्रामक रोग भी कम ही होता है ; परन्तु इसके विपरीत जो परिशुद्ध परिवेश में रहते हैं तथा कम्प्यूटर , इंटरनेट आदि में व्यस्त रहते हैं या रखे जाते हैं , तो वे रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।  

पश्चिम देशों में एलर्जी की अधिकता इन्हीं अति सावधानियों के कारण अधिक हुयी हैं।  एक अन्य शोध में इसके विपरीत उन लोगों का अध्ययन किया गया , जो झोपड़ियों में निवास करते हैं , जिनके बच्चे उन्मुक्त होकर खेलते हैं , वर्षा के पानी में भीगते हैं और तालाब का पानी भी पी जाते हैं ; पर उनको किसी प्रकार की बीमारी भी नहीं होती।  

जीवन में केवल स्वच्छता की ही नहीं , थोड़ी - बहुत धूल-मिट्टी की भी आवश्यकता पडती है।  दिन- रात के समन्वय - संयोग से ही एक पूर्ण चक्र बनता है।  ठीक उसी प्रकार हाइजीन की परिकल्पना में स्वच्छता एवं धूल आदि का होना भी आवश्यक है।  इम्यून सिस्टम के कमजोर हो जाने से छोटी-सी बात भी  रोगों का कारण बन जाती है।  पानी से भीगते ही सर्दी , जुकाम हो जाता है।  धूल से एलर्जी हो जाती है और छींक आदि आने लगती हैं।  ये सभी रोग इम्यून सिस्टम की कमजोरी के कारण पनपते है ; परन्तु इस तन्त्र को मजबूत कर लिया जाये तो ये रोग स्वत: ही समाप्त हो जाएंगे। 

आधुनिकतम शोध निष्कर्ष से पता चला है कि धूल और गोबर में विद्यमान कीटाणुओं से लड़ चुके इम्यून  सिस्टम में इतनी ताकत आ जाती है कि वह दमे आदि रोग को भी पास फटकने नहीं देती। एक और सर्वेक्षण का निष्कर्ष तो चौंकाने वाला है , जो हमारी वैदिक मान्यता  को पुष्ट करता है।  इस व्यापक सर्वेक्षण से पता चलता है कि जिन घरों में गाय और बैल बंधे होते हैं तथा जिनके घर-आंगन में गोबर आदि से लिपाई-पुताई की जाती है ; वहां पर निवास करने वाले लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली अत्यंत सुदृढ़ होती है।  ऐसे लोग रोगों के प्रति संवेदनशील नहीं होते हैं तथा वे स्वस्थ ही रहते हैं।  

हाइजीन से तात्पर्य है प्रकृति का सहचरी -भाव।  प्राकृतिक जीवन ही सही अर्थों में हाइजीन है ; जबकि उसके विपरीत विकृति है , जो अनेक रोगों का कारण बनती है।  साफ-सुथरा होना आवश्यक है  , परन्तु यह तभी हो सकता है , जब गन्दगी को बाहर कर दिया जाये।  कपड़ा साफ स्वच्छ तभी हो सकता है  , जब जब उसे धोया जाता है। ठीक उसी प्रकार स्वास्थ्य तभी पाया जा सकता है , जब रोगों के लड़ने की सामर्थ्य मिल जाये।  अत हमें प्राकृतिक जीवन जीने का यथा- सम्भव प्रयास अवश्य करना चाहिए।  



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