गुरुवार, 15 अगस्त 2013

व्यस्त ही नहीं अपितु व्यवस्थित

व्यस्त ही नहीं अपितु व्यवस्थित 


व्यस्तता और अस्त -व्यस्तता के मध्य एक झीनी -सी  रेखा खिंची हुयी है। व्यस्तता का तात्पर्य है _ किये हुवे कार्य को उपयुक्त ढ़ंग से करना और अस्त-व्यस्तता का तात्पर्य है _ उसे बिखरे बेढ़ब तरीके से करना।  व्यस्तता शुद्ध रूप से एक नित्य प्रति की प्रक्रिया है ; जिसमें व्यक्ति बाह्य रूप से अपने सभी कार्यों को समय के साथ सम्पादित करता हुवा दिखायी देता है। 


व्यस्तता और व्यवस्था में अंतर है। व्यस्त व्यक्ति दीखने में सभ्य और सुसंस्कृत लगता है , लेकिन अपने निजी जीवन में इतने गहरे अवसाद , कुंठा एवं द्वंद्व के भंवर में फँसा हुवा हो सकता है कि वह इस मानसिक परेशानी से उबरने के लिए नशे एवं अन्य कृत्यों सहारा लेने लगता है।  

इसलिए आवश्यक है कि यदि हम जीवन में सुख-शांति एवं प्रसन्नता चाहते हैं तो व्यवस्थित रूप में व्यस्त रहना सीखें।  यही जीवन जीने की कला का मूल सिद्धांत है।  *****

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