रविवार, 18 अगस्त 2013

आदि शंकराचार्य के मठ

आदि शंकराचार्य के मठ 

                                                      



आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा के लिए भारत भर में पाँच मठों की स्थापना की थी। बहुत से लोग इनकी संख्या चार ही मानते हैं। 

पुरी में गोवर्धन , द्वारका में शारदा , दक्षिण में श्रृंगेरी और उत्तर में बद्रीनाथ के समीप ज्योतिर्मठ ( जोशीमठ ). दक्षिण में एक और मठ है कांची।  यहाँ का प्रतिष्ठान और मठों की तुलना में अधिक श्री - समृद्धि -सम्पन्न है। 

मठ की मान्यता है कि अन्य चार मठों में आदिशंकराचार्य ने अपने चार शिष्यों को आचार्य पद सौंपा था।  कांची में उन्होंने स्वयं अध्यक्ष पद दायित्व सम्भाला था।  दूसरे मठों के आचार्य और विद्वान् शंकराचार्य  यहाँ के अध्यक्ष बनने की बात नहीं मानते।  

उपलब्द्ध प्रामाणिक स्रोतों के अनुसार आचार्य शंकर जीवन के अंतिम काल में हिमालय के गुह्य एवं गुप्त प्रदेशों में चले गये थे।  शंकराचार्य ने अंतिम बार केदारनाथ ( उत्तराखंड ) में अपने शिष्यों को सम्बोधित किया  और धर्म-क्षेत्र में सौंपा हुवा दायित्व पूरा करने के लिए कहा।  अपने साथ हमेशा रहने वाले  वाले शिष्यों को अब और आगे नहीं आने देने के लिए कहकर वे हिमालय के गहन क्षेत्र में चले गए।  

                     अन्यतम बदरीनाथ  

आदि शंकराचार्य ने जिन चार मठों की स्थापना की, उनमें बदरीनाथ का महत्त्व सर्वाधिक एवं अन्यतम है।  पुरी , द्वारका और श्रृंगेरी में वे पहले ही मठ स्थापित कर चुके थे।  बदरीनाथ मठ के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा था।  लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहले बदरीनाथ मन्दिर की मूर्त्ति तोड़कर दुष्टों ने कुंद में फेंक  दी थी। बदरीनाथ मन्दिर तब से सूना था।

शंकराचार्य जब यहाँ आये और मठ की स्थिति देखी तो उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से मूर्ति को खोजा।  उन्होंने मूर्ति को कुण्ड से निकलवाया।  कहा जाता है कि ईश्वर की प्रेरणा उसी मूर्ति को पुन: स्तापित किया गया।  सीमा पार से होने वाले विधर्मी आक्रमणों को रोकने के लिए उन्होंने एक संन्यासी संगठन  भी बनाया।  *****  


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें