सोमवार, 12 अगस्त 2013

सार्थक सफलता

प्राय: यह देखने में आता है कि सफल होने के उपरांत लोग संतुष्ट नहीं होते।  जो लोग हमें सफल दिखाई देते हैं , जानने पर ज्ञात होता है कि वे संतुष्ट नहीं हैं।सफलता उनके लिए बोझ बन गयी है. इच्छा जन्म लेती है, पर उसके पूर्ण होने पर भी संतुष्टि नहीं हो पाती।  अर्थात सफलता तो है , पर संतुष्टि नहीं। 

सफलता यदि जीवन की सार्थकता का अनुभव दे जाती है , तभी संतुष्टि अनुभव हो पाती है।  जीवन की सबसे बड़ी चाह जिदगी के सार्थक होने का अनुभव है।  यदि जीवन में सार्थकता की अनुभूति नहीं , तब जो भी प्राप्त किया है , वह भी व्यर्थ है।  

सार्थकता का सम्बन्ध व्यक्ति की मौलिकता से होता है।  मौलिकता की अभिव्यक्ति ही व्यक्ति को सार्थकता का अनुभव प्रदान करती है।  व्यक्ति को अपना लक्ष्य मौलिकता के आधार पर ही निर्धारित करना चाहिए।  मौलिकता की अभिव्यक्ति से व्यक्ति स्वयं को सफल अनुभव कर सकता है। ***
   

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