व्यवहार और मानसिक क्रियाएं तो मानवीय व्यक्तित्व के एक पहलू भर हैं ; अंशमात्र हैं। अंश को जानने के लिए सम्पूर्ण का ज्ञान आवश्यक है तथा निम्नतम को पूर्ण रूप समझने के लिए उच्चतम को जानना अनिवार्य है ; क्योंकि पूर्णता में अंश का अस्तित्व समाहित है और उच्चतम में ही निम्नतम का समाधान निहित है। यही भारतीय मनोविज्ञान है , जिसके नूतन आगमन की घड़ी प्रतीक्षारत है। उसमें समस्त मानसिक समस्याओं का समाधान ही नहीं , अपितु मानसिक चेतना का ऊर्ध्वगमन भी समाहित है
सोमवार, 12 अगस्त 2013
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