सुख बांटने वाली एवं दुःख बंटाने जीवन की एक ही विभूति है , वह है संवेदना। अब सब और से यही
निष्प्राण होती जा रही है ; इसके अभाव मनुष्य स्वार्थ केन्द्रित एवं अहं केन्द्रित होता जा रहा है।
दुनिया में समस्याओं की चर्चा होती है , एक दूसरे पर दोषारोपण किये जाते हैं ; वस्तुत:जिस दिन मानव
के अंदर मानवीय संवेदना जग जाएगी तो उसी दिन मानव-जीवन का स्वर्ण-युग आ जायेगा।
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