सोमवार, 30 दिसंबर 2013

अनुप्रेक्षा या अभ्यास

अनुप्रेक्षा या अभ्यास के द्वारा भी व्यवहार और आचरण को बदला जा सकता है।



अनुप्रेक्षा प्रेक्षा की अग्रिम स्थिति है। प्रेक्षा ध्यान के अभ्यास क्रम में अनुप्रेक्षा को इसलिए संयुक्त किया गया कि बदलने के लिए केवल प्रेक्षा ही पर्याप्त नहीं है , उसके साथ अनुप्रेक्षा का प्रयोग चले तो साधक अपेक्षाकृत जल्दी सफलता प्राप्त क़र सकता है। प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा --ये दो प्रणालियाँ हैं। ये दोनों प्रयोग साथ- साथ चलते हैं। ध्यान का अर्थ है -- देखना अर्थात प्रेक्षा करना। उसकी समाप्ति के पश्चात मन कि मूर्च्छा को तोड़ने वाले विषयों की अनुचिंतना अनुप्रेक्षा है।


 जिस विषय का अनुचिंतन या अभ्यास बार- बार किया जाता है , उससे मन प्रभावित होता है। इसलिए इस चिन्तन या अभ्यास भी कहा जाता है। अनुप्रेक्षा या अभ्यास के द्वारा भी व्यवहार और आचरण को बदला जा सकता है।


 प्रेक्षा का काम अपने आप को जानना और स्वयं को देखना है। जबकि अनुप्रेक्षा का काम है -- प्रेक्षा के द्वारा जो सच्चाईयां उपलब्ध हुई हैं , उनका बार-बार अनु- चिंतन करना। अपनी स्मृति , विषय ,निर्णय और अनुचिंतन को वहां तक ले जाना , जहाँ तक सारी स्थिति स्पष्ट हो जाए।**************************



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