शनिवार, 21 दिसंबर 2013

श्वास जीवन का अनिवार्य तत्त्व

 तुलसी पास गरीब के ,को आवत , को जात । एक बिचारो साँस है , आत-जात दिन-रात । 


श्वास जीवन का अनिवार्य तत्त्व है । जीवन का तात्पर्य साँस लेने से है। जीवन का प्रारम्भ साँस से ही होता है। साँस की समाप्ति का अर्थ है--जीवन की समाप्ति । साँस के आध्यात्मिक मूल्य को समझने से पूर्व हमें उसके शारीरिक मूल्य को समझना चाहिए । हमारे शरीर , मन और भावनात्मक समस्त क्रियाओं एवं अनुक्रियाओं का प्रधान संचालक और प्रवाहक - संवाहक प्राण ही है।


 श्वास- प्रश्वास की प्रक्रिया से प्राण को उद्दीपन मिलता है। प्राण- वायु जितनी अधिक मात्र में उपलब्ध होती है। रक्त की मात्रा उतनी ही शुद्ध होती है। -- " तुलसी पास गरीब के ,को आवत , को जात । एक बिचारो साँस है , आत-जात दिन-रात । 


। "अत: साँस जितना उखड़ा हुवा या विक्षुब्ध होता है। मन भी उसी प्रकार उतना अधिक चंचल ,अशांत और विक्षुब्ध होता है। साँस जितना सहज ,लम्बा , ताल-बद्ध और शांत - प्रशांत होता है, मन भी उतना ही अधिक प्रफुल्ल , संतुलित और शांत रहता है। साधक का प्रथम प्रयास होता है कि साँस मंद , दीर्घ और सूक्ष्म हो और उसकी दिशा बदले । इसके विपरीत जब साँस तेज होता है, उसकी लम्बाई घट जाती है , संख्या बढ जाती है तथा मन अशांत हो जाता है।


श्वास परिवर्तन से भाव परिवर्तन किया जा सकता है। प्रेक्षा-ध्यान की यात्रा श्वास के आलम्बन से प्रारम्भ होती है। श्वास-प्रेक्षा चेतना की ऊर्ध्व्गामिता के लिए प्रथम सोपान है। यह स्थूल से सूक्ष्म की ओर गति करने का सशक्त माध्यम है। मन को वश में करने सर्वश्रेष्ठ उपाय साँस को पकड़ना है। साँस को पकड़ते ही मन वश में हो जाता है।साँस वर्तमान में घटित होने वाली घटना है। यह एक स्वाभाविक और यथार्थ घटना है । इसको देखने का अर्थ है-- वर्तमान क्षण को देखना है। उसको देखने का अर्थ है -- सत्य का साक्षात्कार , प्रतिक्रिया मुक्त शुद्ध-चेतना का दर्शन तथा राग-द्वेष रहित शुद्ध चैतन्य स्वरूप का अनुभव । 


श्वास-प्रेक्षा का परिणाम -- भावनात्मक परिष्कार ,अन्तर्मुखता का विकास तथा आध्यात्मिक- चेतना का जागरण है। श्वास - प्रेक्षा से जागरूकता एवं समता का विकास होता है। श्वास-प्रेक्षा के तीन प्रकार हैं-- दीर्घ, सहज एवं समवृत्ति । दीर्घ से प्राण-ऊर्जा का विशेष आकर्षण होता है। सहज श्वास में चित्त को दोनों नासिकाओं के मध्य स्थापित कर आने -जाने वाले प्रत्येक साँस का अनुभव किया जाता है। सम- वृत्ति श्वास में श्वास की गति को बदला जाता है। इस साँस के नियमित अभ्यास से चेतना के विशिष्ट केन्द्रों को जगाया जा सकता है। समवृत्ति श्वास के प्रयोग से जहाँ मैत्री - भाव का विकास होता है, वहां वैर,शत्रुता, प्रतिशोध आदि का भाव समाप्त हो जाता है। श्वास-प्रेक्षा अनेक रोगों को दूर करने में भी सक्षम है। अनिद्रा-ह्रदय आदि के रोगों को दूर करने के लिए यह उत्तम साधना है।*************************************


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