शनिवार, 14 दिसंबर 2013

पर्यावरण को प्रदूषण - मुक्त

पर्यावरण को प्रदूषण - मुक्त__"शांति- पाठ"


" धर्मो रक्षति रक्षित: " -- धर्म सुरक्षित रहता है तो वह सबकी सुरक्षा करता है। इस तथ्य को आज के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि '' पर्यावरण की रक्षा से ही ; सब सुरक्षित रह सकते हैं । "पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो प्राणी मात्र का अस्तित्व सुरक्षित रहेगा एवं मनुष्यता सुरक्षित रहेगी।

 विभिन्न प्रकार की चीजें जलाने से अनेक गैसें निकल कर वायुमंडल को प्रदूषित करती हैं। इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है ; परिणामत: अतिवृष्टि , बर्फ और कुहरे की समस्याएं उत्पन्न होती हैं । कारखानों से छोड़े गए तेजाब के कारण पानी में भी अम्लता बढ़ रही है। अन्तरिक्ष में फैला हजारों उपग्रहों का मलबा भी आज धरती की स्वस्थता के लिए चिंता का विषय बन रहा है। आज जिस गति से प्रदूषण बढ़ रहा है, पर्यावरण टूट रहा है , ओजोन की छतरी में छेद हो रहे हैं ; उसे देखते हुए पृथ्वी का स्वस्थ रहना और उस पर जीवन तत्त्व को सुरक्षित रख पाना असम्भव - सा हो गया है। 

एक शोध से स्पष्ट हुवा है कि प्रदूषण के चलते -- भ्रूण में नर- तत्त्व का निर्धारण करने वाला गुण- सूत्र क्रोमोसोम नष्ट हो जाएगा , परिणामत: मात्र स्त्रियाँ ही शेष रह जाएँगी।इस दुनिया में प्रत्येक प्राणी का स्वतंत्र अस्तित्व है , सबको अपने ढंग से जीने का अधिकार है। सब प्रकृति के नियमों से बंधे हुए हैं ; एक दूसरे के साथ परस्परता के धागे से जुढ़े हुए हैं। आज मनुष्य प्रकृति के नियमों का अतिक्रमण कर रहा है। 

स्वाभाविक जीवन -चक्र को स्वार्थ प्रेरित बुद्धि से तोडना अत्यधिक घातक होता है। भगवान महावीर ने बहुत पहले ही कहा था कि जल की एक बूंद में चेतना के असंख्य स्पन्दन हैं। अत: जल की हिंसा से भी बचो। उन्होंने जीव-संयम के साथ- साथ अजीव संयम का भी निर्देश दिया है। 

वस्तुत: पर्यावरण - प्रदूषण का मूल है -- अनियंत्रित आकांक्षा , असीमित भोग और प्राणी- हिंसा। इन तीनों के नियमन से पर्यावरण की सुरक्षा सहज रूप से फलित होती है। भगवान् महावीर ने चेतना के छोटे -से छोटे कण को महत्त्व दिया। मिटटी,पानी, अग्नि, हवा , पेढ़- पौधे तथा सम्पूर्ण वनस्पति जगत के शोषण का निषेध किया।

 हमारे वैदिक साहित्य में "शांति- पाठ" की परिकल्पना भी इसी भावना की ओर ही इंगित करती है। शांति - पाठ में द्यु-लोक, अन्तरिक्ष , पृथ्वी, जल, ओषध , वनस्पति आदि की शांति - प्रार्थना पर्यावरण को प्रदूषण - मुक्त रखना ही अभीष्ट है। अत: स्वच्छ पर्यावरण ही स्वस्थ व्यक्तित्व का पोषक हो सकता है।***********



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