सोमवार, 16 दिसंबर 2013

तीसरी आँख , intution

दिव्य-दृष्टि ही प्रज्ञा 


प्रज्ञा का अर्थ है अंतर्दृष्टि। यही है तीसरी आँख , intution। दो आँखे सबको प्राप्त हैं। आज तीसरी आँख की आवश्यकता है। उसका अतिरिक्त मूल्य है। पश्चिम में "third eye"विशेष आकर्षण का विषय है। भगवान महावीर समता को तीसरी आँख मानते हैं।यह समता की आँख ही प्रज्ञा है।


 प्रज्ञा का अर्थ है -- सहज -बोध , शुद्ध -चेतना का अनुभव। प्रत्यक्ष अनुभूत ज्ञान ही प्रज्ञा है। हम जितने-जितने वीतराग की दिशा में गतिमान होते हैं, उतने -उतने प्रज्ञावान बनते हैं।यह दिव्य-दृष्टि ही प्रज्ञा है। जिसे दिव्य - दृष्टि प्राप्त हो जाती है, वः द्वंद्व-मुक्त हो जाता है। 

बहिर्मुखता की प्रेरणा है पदार्थ जगत एवं अंतर्मुख ता की प्रेरणा है यथार्थ जगत ।पदार्थवादी दृष्टि का आकर्षण का केंद्र बना उपभोग और यथार्थवादी दृष्टि का लक्ष्य रहा उपयोग । उपभोग से उपयोग और उपयोग से योग की दिशाओं का उद्घाटन ही तृतीय-नेत्र अर्थात प्रज्ञा है।इसी से ही भीतर का पट खुलता है।


 प्रज्ञा न श्रुत-ज्ञान है और न केवल ज्ञान। प्रज्ञा का स्थान बुद्धि से बहुत ऊंचा है। बुद्धि चंचल एवं अस्थिर होती है। प्रज्ञा--शांत , स्थिर और अप्रक्म्प होती है । प्रज्ञा कोई पांडित्य नहीं है। यह विवेक- चेतना है। आन्तरिक क्रांति है ,अंत: स्फुरित ज्ञान रश्मियों का पुंज है।


 प्रज्ञा को जागृत करने के लिए त्रिगुप्ती की साधना करनी होती है। इससे मन ,वाणी और शरीर को प्रशिक्षित करना होता है। मन को प्रसिक्षित करने के लिए पहली अपेक्षा है --मन की स्वस्थता एवं प्रसन्नता , दूसरी अपेक्षा है --आर्त-ध्यान , आवेश , दुश्चिंता तथा बदले की भावना से सदा बचे रहना ।


 वाणी को साधने के लिए अपेक्षित है नियमित मौन का अभ्यास। शरीर को साधने के लिए अपेक्षित है --गति -संयम या गमन- योग का अभ्यास। लम्बे समय तक स्थिर बैठने का अभ्यास। आसन- सिद्धि काया- सिद्धि का प्रमाण-पत्र है। हमें अलौकिक ज्योति कों पहचानाना चाहिए । तभी हम आत्म - दीप होकर प्रज्ञा रूपी चेतना को प्राप्त कर सकते हैं।***********************************************





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