रविवार, 22 दिसंबर 2013

ऋत- ऋतु

ऋत अटल एवं निश्चल एवं ऋतु की स्थिति काल-विशेष पर आधारित 




ऋतु की स्थिति काल-विशेष पर आधारित होती है। एक रूप से ऋत का ही सार्वकालिक रूप ऋतु है। ऋतु प्राकृतिक एवं सतत गतिशील स्थिति का परिचायक है। ऋत भी अटल एवं निश्चल है। ऋत सदा - सदा के लिए सत्य ही रहता है। उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है। 





 सूर्य का एक चक्र वर्ष -भर का होता है, अर्थात वर्ष -भर में पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा पूर्ण करती है। वर्ष-भर में छ: ऋतुएँ होती हैं। प्रत्येक वर्ष में दो-दो मास प्रत्येक ऋतु के होते हैं। यहाँ गणना हिंदी के मास से की गयी है। साथ लगभग गणना के लिए अंग्रेजी महीनों का भी संकेत भी दे दिया गया है। मार्गशीर्ष -पौष (दिसम्बर-जनवरी )में हेमंत ;माघ-फाल्गुन (फरवरी-मार्च)में शिशिर ;चैत्र-वैशाख (अप्रेल-मई)में वसंत ;ज्येष्ठ-आषाढ़ (जून-जुलाई )में ग्रीष्म ;श्रावण एवं भांदों में वर्षा (अगस्त-सितम्बर ); आश्विन -कार्तिक (अक्टूबर -नवम्बर) में शरद ऋतु होती है । इस प्रकार ऋतु -चक्र चलता रहता है ।




 प्रत्येक ऋतु अपने समय पर आती -जाती हैं । प्रत्येक ऋतु का अपना शील होता है । प्रत्येक ऋतु अपना प्राकृतिक परिवेश विशेष रूप से रखती है । यह प्राकृतिक परिवेश ही धरा को शश्य-श्यामल बना देता है । ऋतु- परिवर्तन भारत की अपनी निजी विशेषता है ;परिणामत: यह देव - भूमि है । इस देव-भूमि को कोटिश: प्रणाम।**************************************************************************



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