शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

ॐ अक्षर परमात्मा का ही व्यक्त रूप

नामोच्चारण से ईश्वर का अनिवार्य स्मरण



ॐ शब्द में दर्शन , उच्चारण और वचन - भेद कदापि नहीं हो सकता । अक्षर- ब्रह्म को व्यक्त करने वाला यह ओंकार अक्षर सदा अपरिवर्तनीय है। प्रणव इसी का प्रतिनिधि है। अव्युत्पन्न ॐ ---अ, उ , म --इन तीन अक्षरों के मेल से बनता है। यह वर्ण ' उद्गीथ ' में अगणित त्रयी स्थिति का बोधक है। यथा --- भू: - भुव: - स्व: ; स्थूल - सूक्ष्म- कारण ; जाग्रति - स्वप्न - सुषुप्ति ; ब्रह्मा - विष्णु - महेश ; ऋक - यजु: - साम ; वैश्वानर - तेजस - प्राज्ञ ; गार्हपत्य अग्नि - दक्षिण अग्नि - आवह्नीय अग्नि ; सूर्य - चन्द्र - अग्नि ; विराट हिरण्यगर्भ - माया देह नाश - निर्माण स्थिति ; जीव - प्रकृति - ब्रह्म आदि । इस प्रकार ओंकार अनंत गुणों और विभूतियों को अपने अंतर्गत समाहित किए हुवे है ।

 इन सबकी विस्तृत चर्चा प्रश्न और छान्दोग्य उपनिषद में हुई है । मांडूक्य उपनिषद इसका आध्यात्मिक रहस्योद्घाटन सर्वथा अनुपम है । ओंकार का अकार मात्र एक स्वर या ध्वनि नहीं है , वरन समस्त ध्वनि जगत का अंतर्भाव करने वाला प्रतीक है । गीता में विभूति- वर्णन के समय भगवान कृष्ण यह भी कहते हैं -- " अक्षराणां अकारोस्मि " अर्थात अक्षर में अकार मैं ही हूँ । निश्चय ही इसकी अनुपस्थिति में भाषा- शास्त्र और स्वर- विज्ञानं अपंग एवं मूक स्वर के ही सिद्ध होते हैं । इससे इसकी महत्ता स्पष्टत: विदित होजाती है। यह महत्त्व तब और स्पष्ट होता है , जब विभिन्न वर्णों को अकार से पृथक करते हुवे उच्चारण का विफल प्रयास किया जाता है । वस्तुत: वर्ण -विज्ञानं का आदि- मूल 'अकार' है। यह अकार और कुछ नहीं , अपितु 'प्रणव ' में व्यक्त हो रही ईश्वरीय - चेतना की व्यापकता ही है।


 ' उ' और 'म ' इसी अकार के विकसित रूप हैं। इन्हीं तीन ध्वनियों द्वारा सम्पूर्ण नाद जगत का प्रतिनधित्व होता है । अत: इनके संयुक्त रूप ॐ द्वारा हम उस नाद ब्रह्म एवं शब्द ब्रह्म को जानने , समझने और उसकी अनुभूति करने का प्रयास करते हैं। शब्द आकाश का गुण है। आकाश में इसका निर्माण और विलय- विसर्जन होता रहता है। अध्यात्म की यह सुनिश्चित अवधारणा है कीकि शब्द और अर्थ अन्योन्याश्रित हैं ।


 नाम - जप का यही रहस्य है , नामोच्चारण से ईश्वर का अनिवार्य स्मरण होता है। इसी को योग दर्शन में आगे स्पष्ट किया गया है -- ' तज्जपस्त तदर्थ भावनम ' अर्थात नाम-जप से अंत:करण में भगवद भावना उभरने लगती है। इस प्रकार उद्गीथ ॐ मनुष्य और महत चेतना के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने में सेतु का काम करता है। अत: ॐ अक्षर परमात्मा का ही व्यक्त रूप है और वह उसी का प्रकाश है।********


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