सोमवार, 16 दिसंबर 2013

ओ३म को मंत्र का सेतु

मंत्र-जाप के मुख्यत: तीन लाभ -- निरामयता , निर्विकारता और निर्भयता 



अध्यात्म - साधना का पवित्रतम उद्देश्य है चित्त की शुद्धि। इसके हेतु अनेक साधन हैं । साधन वह होता है ,जिसके द्वारा सिद्धि मिले । सिद्धि अभ्यास - साध्य है। भारतीय मनीषियों ने सिद्धि और शुद्धि के लिए अनेक साधनों और उपायों की खोज की । उनअमें से एक मंत्र- शास्त्र भी है ।


 मंत्र - शास्त्र के अनुसार वर्ण- माला के अंतर्गत ऐसा कोई अक्षर नहीं है , जो मंत्र न बन सके । मंत्र- द्रष्टा ऋषियों ने उन्हीं वर्णों के विभिन्न संयोगों से अनेक मन्त्रों की संरचना और प्राण - प्रतिष्ठा की । प्रत्येक मंत्र का अपना स्वतंत्र बीजाक्षर होता है । बीजाक्षर मुख्यत: पांच प्रकार का होता है--- ओ३म --परमात्म-तत्त्व , ह्रीं-- प्रकृति-माया , श्रीं --सौंदर्य व वैभव , क्लीँ--संकल्प-शक्ति , हें --- बुद्धि व स्मृति । प्राय:प्रत्येक के kkआदि में ओ३म तथा अंत में नम: का प्रयोग होता है । 


ओ३म को मंत्र का सेतु माना गया है । इससे मंत्र शक्ति का संधान होता है । अत: मन्त्रों को तेजोमय शक्ति का समुच्चय कहा गया है । मंत्र वह होता है , जो मन को शांत एवं उसकी रक्षा करे । मनुष्य अपने जीवन में जितना मनन करता है , वह अधिकांशत: खो जाता है, किन्तु मंत्र द्वारा किया गया मनन सदा सुरक्षित रहता है। मंत्रो के प्रभाव को स्थूल दृष्टि से देखा - परखा नहीं जाता । मात्र परिणाम का अनुभव होता है । 


प्रार्थना , स्तुतियाँ, कीर्तन , भजन आदि की भांति मंत्र- जप भी साधना का एक अंग बन गया। मंत्र- विद आचार्यों ने स्वीकार किया है कि मंत्र- जाप से जीभ पर अमृत का स्राव होता है। इससे शरीर शीतल , कांतिमय और तेजस्वी बनता है। मन निर्विकार होता है। यथार्थत: मंत्र - शक्ति एक स्वस्थ वैज्ञानिक प्रक्रिया है। यह सम्पूर्ण पद्धति ध्वनी- विज्ञानं पर आधारित है। विधि- पूर्वक , लयबद्ध मंत्र के उच्चारण से वायु -मंडल और आभा-मंडल दोनों प्रभावित होते हैं।


 स्थूल शरीर की स्थिरता , तैजस शरीर की पवित्रता और कर्म शरीर की श्रद्धाशीलता -- इस त्रियोग से ही मंत्र- साधना फलवती होती है। मंत्र-जाप के मुख्यत: तीन लाभ -- निरामयता , निर्विकारता और निर्भयता स्वीकार किया गया है। मन्त्रों को शक्तिशाली बनाने में उसकी आवृत्तियों का प्रमुख स्थान है । आवृत्तियों से उठने वाली ध्वनि- तरंगो का एक गति-चक्र बन जाता है। जिसप्रकार पत्थर के छोटे से ढेले को डोर से बांध कर यदि तेज गति से घुमाया जाता है। तो वह सनसनाहट करता हुवा तीर की भांति बेधक बन जाता है।


 सारांशत: विभिन्न मंत्र हमारे पूरे शरीर- तंत्र को, विचार-तंत्र को और भावना - तन्त्र को प्रभावित करते हुवे आंतरिक ऊर्जा को जगाता है। एवं चैतन्य को ऊर्ध्वमुखी बनाता है, अध्यात्म की अटल गहराइयों का संस्पर्श करवाता है। यथोचित मन्त्रों के अनुष्ठान से स्वस्थ शक्ति -सम्पन्न और संतुलित व्यक्ति का निर्माण किया जा सकता है।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&


1 टिप्पणी:

  1. मुझे सच में इतनी डिटेल नही पता थी "ॐ" के बारे में। आपने बहुत ही सुन्दर तरीके से बताया है आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏

    https://bhaktibhajanlyrics.com/

    जवाब देंहटाएं