शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

कलर- थेरेपी

सूर्य-प्रकाश की किरणें आरोग्य प्रदान करने वाली


शरीर के मध्य का सम्पर्क - सूत्र है। रंगों के आधार पर लेश्या के छ: प्रकार हैं-- कृष्ण , नील, कपोत, तेजस , पद्म और शुक्ल । इनमें प्रथम तीन अशुभ और अंतिम तीन शुभ हैं। कृष्ण, नील , और कपोत --ये तीनों लेश्याएँ बदलती हैं; तब तेजस, पद्म और शुक्ल लेश्याओं का अवतरण होता है और यहीं से परिवर्तन का क्रम प्रारम्भ होता है।


 लेश्या परिवर्तन से ही अध्यात्म की यात्रा आगे बढ़ती है। लेश्या परिवर्तन से ही धर्म सिद्ध होता है। अध्यात्म की यात्रा का प्रारम्भ तेजस लाश्य से होता है। तेजस लेश्या का रंग लाल अर्थात बाल-सूर्य जैसा अरुण होता है। रंगों का मनोविज्ञान बताता है कि अध्यात्म कि यात्रा लाल रंग से ही शुरू होती है। प्रेक्षा-ध्यान शिविरों में श्वास-प्रेक्षा और चैतन्य-केंद्र प्रेक्षा के सोपानों को पार करने के बाद साधकों को लेश्या- ध्यान कराया जाता है।




 लेश्या - ध्यान के अभ्यास से ही शिविर- साधना में रसानुभूति होने लगती है। पश्चिम में कलर- थेरेपी कलर - meditation कि विधि बहुत विकसित और प्रचलित हो रही है। कलर- थेरेपी के आधार पर ही क्रोमो- थेरेपी अर्थात सूर्य-किरण-चिकित्सा का विकास हुवा है। 



सूर्य-प्रकाश की किरणें आरोग्य प्रदान करने वाली होती हैं। शीशे की बोतलों में पानी भरकर धूप में रखने से वह पानी सूर्य - रश्मियों से चार्ज होकर दवा बन जाता है। लेश्या-ध्यान में विभिन्न प्रकार के रंगों पर ध्यान कराकर साधना करायी जाती है। इस साधना में हल्के रंगों का प्रभाव जहाँ अनुकूल होता है , वहां गहरे रंगों का प्रभाव प्रतिकूल भी हो सकता है। इसका ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है।******************************



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