शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

मन जितना शांत होता है ,करवटें भी उतनी ही कम

देह की चंचलता मन की चंचलता का बोध   



कायोत्सर्ग का अर्थ है-- चैतन्य के जागरण के साथ ही शरीर का उत्सर्ग। तथागत बुद्ध जब सोते तो रात भर करवट नहीं बदलते थे। मूल बात यह है कि मन जितना शांत होता है ,करवटें भी उतनी ही कम बदलनी पडती हैं। अशांत मन वाले व्यक्ति रात भर करवट बदलते रहते हैं। एकरूप से मनुष्य की अशांत स्थिति ही उसके शरीर की चंचलता में अभिव्यक्त होती है। 

मनुष्य का मन जैसे-जैसे शांत होगा , वैसे -वैसे उसका शरीर भी स्थिर होगा। देह की चंचलता मन की चंचलता का बोध कराती है । ध्यान के माध्यम से जब मन एकाग्र और स्थिर होता है , तो शरीर की चंचलता स्वत: दूर हो जाती है।

 ध्यान साधना साधना में मन और शरीर का गहरा अनुबंध है। मन चंचल तो शरीर चंचल , मन स्थिर तो शरीर स्थिर हो जाता है। मन की स्थिरता मन की निमित्त बनती है। ध्यान- साधक के कायिक स्थिरता की साधना आवश्यक है। उसका उपाय है-- कायोत्सर्ग । इसे कायिक ध्यान भी कह सकते हैं।

 कायोत्सर्ग का प्रायोगिक रूप है-- शिथिलीकरण, श्वास को शांत करना , शरीर की चेष्टाओं को विसर्जित करना और मन को पूर्णत: रिक्त कर देना। कायोत्सर्ग ध्यान की अनिवार्य भूमिका है। क्योंकि काया की स्थिरता के बिना मन की स्थिरता उपलब्ध नहीं होती। मन को स्थिर करने के लिए श्वास की स्थिरता और श्वास की स्थिरता के लिए शरीर की स्थिरता परम आवश्यक है।

 इसलिए ध्यान के आधारभूत तत्त्वों में कायोत्सर्ग का पहला स्थान है, अर्थात काया की स्थिरता का है। शारीरिक दृष्टि से कायोत्सर्ग नींद की अपेक्षा अधिक विश्रामदायक है। तनाव से उत्पन्न होने वाली मनोदैहिक बीमारियों को मिटाने का यह निर्दोष उपाय है। आध्यात्मिक दृष्टि से कायोत्सर्ग सफल प्रयोग है। देहाध्यास से मुक्त होने का कायोत्सर्ग विशिष्ट सरल एवं सफल साधन कहा जा सकता है ।************************


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