दु:ख आर्य-सत्य है ,यह मनुष्य के जीवन को दुखी बनाने वाला रोग है। जीवन में दुःख तो है ही , जीवन -जगत की यह पहली सच्चाई है। दुःख के पीछे कोई कारण है , यह दूसरी सच्चाई है । यदि कारण दूर कर लिया तो दुःख दूर हो ही गया । यों दुःख दूर करने एक तरीका है । यह तीसरी और चौथी सच्चाईयां हैं । चित्त की चेतना का एक खंड विज्ञानं जानने का काम करता है । दूसरा खंड संज्ञा पहचानने का काम करता है । तीसरा खंड वेदना संवेदनशील होनेका काम करता है और चौथा खंड संस्कार प्रतिक्रिया करने का काम करता है।
अनुभूतियों के स्तर पर इस सारी प्रक्रिया को समझना है। जबतक दुःख को भोगते हैं ,दुःख का संवर्धन ही करते हैं, दुःख को बढ़ाते ही हैं।जब दुःख का दर्शन करने लगते हैं ,तो दुःख दूर होने लगता है। दुःख सत्य ,आर्य सत्य , बन जाता है। जो प्रिय है उसका वियोग हुए जा रहा है ,प्रिय व्यक्ति, प्रिय वस्तु , एवं प्रिय स्थिति सभी का ही वियोग होता जा रहा है । जो अप्रिय है उसका संयोग हुए जा रहा है अनचाही होती रहती है,मनचाही नहीं होती। जो कामना करता है,वह पूरी नहीं होती तो दुखी रहता है। यह जीवन -जगत की सच्चाई है।...इ
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अनुभूतियों के स्तर पर इस सारी प्रक्रिया को समझना है। जबतक दुःख को भोगते हैं ,दुःख का संवर्धन ही करते हैं, दुःख को बढ़ाते ही हैं।जब दुःख का दर्शन करने लगते हैं ,तो दुःख दूर होने लगता है। दुःख सत्य ,आर्य सत्य , बन जाता है। जो प्रिय है उसका वियोग हुए जा रहा है ,प्रिय व्यक्ति, प्रिय वस्तु , एवं प्रिय स्थिति सभी का ही वियोग होता जा रहा है । जो अप्रिय है उसका संयोग हुए जा रहा है अनचाही होती रहती है,मनचाही नहीं होती। जो कामना करता है,वह पूरी नहीं होती तो दुखी रहता है। यह जीवन -जगत की सच्चाई है।...इ
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